सटीक और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने वाला नैनो यूरिया 4 R पोषक तत्व प्रबंधन का एक संभाव्य घटक है। यह स्वच्छ और हरित प्रौद्योगिकी को भी बढ़ावा देता है क्योंकि इसके औद्योगिक उत्पादन ना तो ऊर्जा का गहन करते हैं और ना ही यह संसाधन की खपत करता है। इसके अलावा, नैनो यूरिया लीचिंग और गैसीय उत्सर्जन को कम कर कृषि क्षेत्रों में होने वाले पोषक तत्वों के नुकसान को कम करने में मदद कर रहा है और पर्यावरण को बेहतर बना रहा है। ज्ञात हो कि लीचिंग और गैसीय उत्सर्जन पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण है।
नैनो यूरिया (तरल) में 4% नैनोस्केल नाइट्रोजन कण होते हैं। पारंपरिक यूरिया की प्रति इकाई क्षेत्रफल की तुलना में नैनोस्केल नाइट्रोजन कणों का आकार छोटा (20-50 नैनो मी); अधिक पृष्ठ क्षेत्रफल और कणों की संख्या अधिक होती है।
वे आसानी से कोशिका भित्ति या पत्ती रंध्र छिद्रों के माध्यम से प्रवेश कर सकते हैं।
पौधे में प्रवेश करने के बाद, उन्हें फ्लोएम कोशिकाओं, प्लास्मोडेसमाटा (40 नैनो मी व्यास) के माध्यम से पौधों के अन्य हिस्सों में ले जाया जाता है या एक्वापोरिन, आयन चैनल और एंडोसाइटोसिस के माध्यम से वाहक प्रोटीन से बांध सकते हैं।
इसलिए, नैनो यूरिया तरल के पर्णीय उपयोग से अधिक कुशल नाइट्रोजन अवशोषण, बेहतर शारीरिक विकास, अनाज उत्पादन और फलों की गुणवत्ता बेहतर होती है।
इफको नैनो यूरिया भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा ओईसीडी परीक्षण दिशानिर्देशों (टीजी) और नैनो कृषि आदान (एनएआईपी) और खाद्य उत्पादों के परीक्षण के दिशानिर्देशों के अनुरूप है। नैनो यूरिया को स्वतंत्र रूप से एनएबीएल-मान्यता प्राप्त और जीएलपी प्रमाणित प्रयोगशालाओं द्वारा जैव-प्रभावकारिता, जैव सुरक्षा-विषाक्तता और पर्यावरण उपयुक्तता के साथ परीक्षण और प्रमाणित किया गया है। इफको नैनो उर्वरक नैनो प्रौद्योगिकी या नैनो पैमाने के कृषि-आदानों से संबंधित सभी मौजूदा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों को पूरा करते हैं। नैनो-उर्वरक नैनो यूरिया के एफसीओ 1985 की अनुसूची VII में शामिल होने के साथ ही इसका उत्पादन इफको द्वारा किया गया है ताकि किसान अंततः नैनो तकनीक के वरदान से लाभान्वित हो सकें। नैनो उर्वरकों के कारण 'आत्मनिर्भर भारत' और 'आत्मानिर्भर कृषि' की दिशा में यह शानदार कदम होगा।